माटी की मूरत
राधा का पति कोरोना की चपेट में आकर इस दुनिया से रुखसत हो गया। राधा और उसका चार साल का बेटा बेसहारा हो गए। राधा ने खुद को संभाला बेटे की खातिर मिट्टी के बर्तन बनाने का पति का काम अपने हाथ में लेकर संभालने लगी और अपने बच्चे का पालन पोषण करने लगी।
दो ही साल बीते होंगे कि एक दिन उसके बच्चे को हैजा हो गया। अस्पताल में भर्ती भी कराया किन्तु दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई।
राधा तो जैसे बुत बन गई। खाना-पीना अपनी सुध ही भूल गई। पति की मृत्यु के बाद उसने बेटे में सहारा देखा किन्तु अब उसकी सब उम्मीदें टूट गईं। जिंदगी लाश बन गई।
एक दिन मिट्टी के ढेर के पास बैठी बेसुध सी अपने बच्चे को याद करके रोती रही, उसके आंसू मिट्टी को भिगोते रहे, बेध्यानी में उसने अपने बेटे की मूरत बना ली। उसका नाम कल्लू रख दिया जो उसके बेटे का था।
मूरत बनाते हुए उसे लगा जैसे उसके घावों पर मरहम सी लग रही है।
उसे जैसे वक्त गुजारने का जरिया मिल गया। कल्लू बेटा खाना खा ले, कल्लू बेटा नहा ले, उठ जा बेटा सूरज चढ़ आया है।
वह मूरत के लिए खाना बनाती, खिलाती, उसके काम करती रहती, उसे सजाती रहती। राधा की दुनिया कल्लू की मूरत तक सिमट गई।
अड़ौसी-पड़ौसी सुनते तो आपस में बात करते कि राधा बेटे के गम में पागल हो गई है।
ऐसे ही पागलपन में राधा का वक्त गुजरने लगा।
एक दिन राधा बीमार पड़ गई। उसने खाट पकड़ ली। बीमारी में वह कल्लू को पुकारती।
बेटा कल्लू तू भूखा होगा नहा-धोकर कुछ बना ले बेटा, खिचड़ी बना ले।
राधा की तबियत ज्यादा बिगड़ी तो उस पर बेहोश छाने लगी। उसके दिमाग में सिर्फ कल्लू का खयाल था। बीमारी में उसे लगता कि कल्लू उसकी सेवा कर रहा है, उसे खाना खिला रहा है। खिचड़ी खिला रहा है।
आस-पास वाले राधा का हालचाल पूछने आते, कुछ खाने-पीने की चीजें रख आते। उनको लगने लगा कि अब राधा नहीं बचेगी।
गाँव वालों को थोड़ा आश्चर्य भी हुआ। जब वह राधा को देखने जाते तो वहां उन्हें खाने के बर्तन, थाली में खिचड़ी आदि दिखता। उन्हें लगता कि कोई पड़ौसी रख गया होगा। उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
राधा धीरे-धीरे ठीक होने लगी, उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि कल्लू सच में है और उसकी सेवा कर रहा है। राधा धीरे-धीरे स्वस्थ हो गई।
उसने देखा कि कल्लू की मूरत की जगह पर सचमुच कल्लू खड़ा है। राधा बहुत खुश रहने लगी।
राधा को स्वस्थ और खुश देखकर गांव वालों को भी लगने लगा कि कल्लू के रूप में भगवान राधा की देखभाल कर रहे हैं।
यही ईश्वर की महिमा है….!!
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Babita patel
24-Aug-2023 06:18 AM
amazing
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madhura
17-Aug-2023 04:33 AM
very nice
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kashish
03-Jul-2023 03:52 PM
nice
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